Month: अप्रैल 2017

देने का उपहार

एक पासवान ने अपनी कलीसिया को बेचैन करनेवाली चुनौती देकर वाक्यांश “वह तुम्हें सब कुछ दे देगा” में जान डाल दी l क्या होगा यदि हम अपने कोट उतारकर ज़रुरतमंदों को दे दें? तत्पश्चात उसने अपना कोट उतारकर कलीसिया के आगे रख दिया l बहुतों ने उसके नमूने का अनुसरण किया l यह सर्दियों के समय हुआ, इसलिए उस दिन घर जाना कम आरामदायक था l किन्तु अनेक ज़रुरतमंदों को उस मौसम ने थोड़ी गर्माहट दी l

जब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला यहूदिया के निर्जन प्रदेश में फिरता था, उसके पास आनेवाली भीड़ के लिए कड़ी चेतावनी थी l उसने कहा, “हे साँप के बच्चों ... मन फिराव के योग्य फल लाओ” (लूका 3:7-8) l चौंक कर उन्होंने उससे पूछा, “तो हम क्या करें?” उसने एक सलाह के साथ उत्तर दिया : “जिसके पास दो कुरते हों, वह उसके साथ जिसके पास नहीं है बाँट ले और जिसके पास भोजन हो, वह भी ऐसा ही करे” (पद.10-11) l सच्चा पश्चाताप एक उदार हृदय उत्पन्न करता है l

क्योंकि “परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम करता है,” दान दोष-आधारित अथवा विवशता में न हो (2 कुरिं.9:7) l किन्तु जब हम स्वतंत्रता और उदारता से देते हैं, तो हम देखते हैं कि वास्तव में लेने से देना धन्य है l

भरोसा करें

हमारे विवाह की सालगिरह पर, आनंददायक रोमांच के लिए मेरे पति ने अपने मित्र से दो सीट और दो जोड़ी पैडल वाली साइकिल मांग लाए l उसको चलाते समय, मैंने महसूस किया कि पीछे की सीट पर बैठकर मैं अपने पति के चौड़े कन्धों के कारण सामने ठीक से देखने में असमर्थ थी l और मेरा हैंडल स्थिर होने से साइकिल को मोड़ने में उसका योगदान नहीं था l केवल सामने वाला हैंडल ही हमारी दिशा निर्धारित कर रहा था; मेरा हैंडल मेरे शरीर के लिए सहारा मात्र था l साइकिल पर नियंत्रण नहीं कर पाने से मैं निराश हो सकती थी अथवा अपने पति, माइक पर भरोसा करके सुरक्षा और मार्गदर्शन का चुनाव कर सकती थी l

जब परमेश्वर ने अब्राम से अपना घर और परिवार छोड़ने को कहा, उसने उसे मंजिल के विषय अधिक जानकारी नहीं दी l कोई भुगौलिक मार्गदर्शन नहीं l नए स्थान अथवा उसके प्राकृतिक संसाधन की कोई भी जानकारी नहीं l न ही वहाँ पहुँचने में लगने वाला समय l परमेश्वर ने केवल उससे उस देश में “जाने” को कहा जो वह उसे देनेवाला था l जब बहुत लोग जानकारी चाहते हैं, अब्राम का बिना जानकारी के, परमेश्वर के निर्देश के प्रति आज्ञापालन, उसके लिए विश्वास गिना गया (इब्रा. 11:8) l

यदि हम अपने जीवनों में अनिश्चितता अथवा अनियंत्रण महसूस करें, हम अब्राम की तरह परमेश्वर का अनुसरण करें और भरोसा रखें l प्रभु हमें भली-भांति लिए चलेगा l

मधुर सुगंध

लेखिका रीटा स्नोडेन डोवर, इंग्लैंड की अपनी यात्रा की एक दिलचस्प कहानी बताती है l एक दोपहर कॉफ़ी-हाउस में कॉफ़ी का आनंद लेते हुए, उसे मधुर सुगंध का बोध हुआ l रीटा के वेटर से पूछने पर उसे बताया गया कि आने-जाने वाले लोगों से आ रही है l गाँव के अधिकतर लोग निकट के एक सुगंध कारखाना में काम करते थे l घर जाते समय, वे अपने कपड़ों में तर उस सुगंध को सड़कों तक बिखेरते जाते थे l

मसीही जीवन की कितनी सुन्दर तस्वीर? प्रेरित पौलुस अनुसार, हम मसीह की सुगंध हैं, जो हम सभी जगह फैलाते हैं (2 कुरिं. 2:15) l पौलुस युद्ध से लौटते हुए एक राजा की तस्वीर उपयोग करता है, जिसमें उसकी सेना और बंदी उसके पीछे चलते हुए, वातावरण में विजय की सुगंध फैलाते हुए, राजा की महानता घोषित कर रहे होते हैं (पद.14) l 

पौलुस अनुसार हम मसीह की सुगंध दो तरीकों से फैलाते हैं l प्रथम, खुबसूरत यीशु के विषय दूसरों को बताकर l द्वितीय, अपने जीवनों से : मसीह की तरह बलिदानी कार्यों द्वारा (इफि. 5:1-2) l यद्यपि हमारे द्वारा फैलाई जा रही उस दिव्य सुगंध को सब स्वीकार नहीं करेंगे, वह बहुतों को जीवन देगा l

रीटा स्नोडेन को महक लगी और वह उसका उद्गम जानना चाही l यीशु का अनुसरण करने पर हम भी उसके सुगंध से तर होकर, उसे अपने शब्दों और कार्यों द्वारा सभी जगह फैलाते हैं l

दृश्य का आनंद लें

सूर्यास्त l  लोग इसे देखने के लिए काम रोक देते हैं .... उसका तस्वीर खींचते हैं ... सुन्दर दृश्य का आनंद लेते हैं l

हम दोनों पति-पत्नी ने हाल ही में मेक्सिको की खाड़ी में सूर्यास्त देखा l लोगों का एक समूह हमारे साथ था, अधिकतर अपरिचित जो संध्या की इस अद्भुत घटना को देखने हेतु तट पर इकट्ठा थे l जिस क्षण सूर्य क्षितिज पर अस्त हुआ भीड़ ने वाहवाही की l

लोग इस तरह प्रतिक्रिया क्यों देते हैं? भजन सहिंता संकेत देता है l भजनकार परमेश्वर के विषय लिखता है कि वह सूर्य से अपने सृष्टिकर्ता की प्रशंसा करवाता है (भजन 148:3) l और जब सूर्य की किरणें पृथ्वी पर चमकती हैं, लोग उनके साथ प्रशंसा करने को विवश होते हैं l

कुछ बातों की तरह प्रकृति की सुन्दरता हमारे मन से बातें करती है l उसके पास हमें मार्ग में रोकने की ताकत और हमारे ध्यान को खींचने की ताकत ही नहीं है, बल्कि वह सुन्दरता के रचयिता की ओर हमारा ध्यान ले जाता है l

परमेश्वर की बड़ी सृष्टि का विस्मय हमें रोककर सबसे महत्वपूर्ण बात याद दिलाता है l यह हमें याद दिलाता है कि इस दिन के इस अद्भुत आगमन और गमन के पीछे एक सृष्टिकर्ता है, जो इस संसार से जिसे उसने बनाया, से बहुत प्रेम करता है कि वह इसमें आया कि इसे बचा ले और नया कर दे l

यीशु के साथ घर में

“घर से अच्छी जगह कोई नहीं l” यह वाक्यांश एक विश्राम स्थान, उसमें रहने, और अपने घर के लिए हमारे अन्दर की गहरी चाह दर्शाता है l यीशु ने अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोज खाने के बाद, अपनी भावी मृत्यु और पुनरुत्थान के विषय बोलते समय, इस बुनियादी ज़रूरत की इच्छा को संबोधित किया l उसकी प्रतिज्ञा थी कि यद्यपि वह चला जाएगा, वह फिर उनके लिए आएगा l और वह उनके लिए जगह तैयार करेगा l एक निवास स्थान l एक घर l

उसने यह स्थान परमेश्वर की व्यवस्था की अनिवार्यता को पूरा करते हुए निर्दोष मनुष्य होकर क्रूस पर अपनी जान देकर उनके और हमारे लिए तैयार किया l उसने शिष्यों को आश्वस्त किया कि यदि वह इस घर को बनाने हेतु कष्ट उठाता है, तो वह अवश्य ही उनके लिए लौटेगा और उनको अकेला नहीं छोड़ेगा l उन्हें अपने जीवन के विषय डरने और चिंता करने की ज़रूरत नहीं, चाहे पृथ्वी पर अथवा स्वर्ग में l

हमारा विश्वास है कि यीशु हमारे लिए घर बना रहा है; कि वह हमारे अन्दर अपना घर बनाता है (देखें यूहन्ना 14:23), और वह हमसे पहले हमारा स्वर्गिक घर बनाने गया है, हम उसके शब्दों से शांति और निश्चयता पाते हैं l हम किसी तरह के भौतिक घर में रहते हों, हम यीशु के हैं, उसका प्रेम हमें थामें है और हम उसकी शांति से घिरे हैं l उसके साथ, घर से अच्छी जगह कोई नहीं l

वह समझता और चिंता करता है

यह पूछने पर कि उसके विचार से क्या अज्ञानता और बेपरवाही आधुनिक समाज में समस्याएँ हैं, एक व्यक्ति ने मज़ाक किया, “मुझे नहीं मालुम और मुझे परवाह नहीं l”

मेरे विचार से अनेक निराश लोग आज संसार और लोगों के विषय ऐसा ही सोचते हैं l किन्तु जब बात होती है हमारे जीवन की परेशानियों और चिंताओं की, यीशु पूरी तरह समझता, और गहरी चिंता करता है l यशायाह 53, यीश के क्रूसीकरण का पुराने नियम का नबूवत, हमारे लिए यीशु की चिंता की एक झलक है l “वह सताया गया, तौभी वह [वध होनेवाली भेड़ की तरह] शांत रहा” (पद.7) l “मेरे ही लोगों के अपराधों के कारण उस पर मार पड़ी” (पद.8) l “यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले; उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब वह अपना प्राण दोषबलि करे, तब वह अपना वंश देखने पाएगा, वह बहुत दिन जीवित रहेगा; उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी” (पद.10) l

यीशु ने क्रूस पर स्वेच्छा से हमारे पाप और दोष सह लिए l हमारे लिए हमारे प्रभु से अधिक कोई नहीं सहा l उसे मालूम था कि हमारे पापों से हमें बचाने में उसको क्या कीमत देनी होगी, और प्रेम में, उसने अपनी इच्छा से कीमत चुका दी (पद.4-6) l

मृत्यु से पुनरुत्थान के कारण यीशु, जीवित है और हमारे साथ उपस्थित है l कोई भी स्थिति हो, यीशु समझता और चिंता करता है l वह हमें लिए चलेगा l

प्रेम की कीमत

हमारे अपने माता-पिता को अलविदा कहते समय मेरी बेटी रोने लगी l नाना-नानी इंग्लैंड में हमलोगों से मिलकर अपने घर अमरीका जानेवाले थे l मैं नहीं चाहती वे जाएँ,” उसने कहा l मेरे उसको शांत करने पर, मेरे पति ने कहा, “मुझे डर है कि यही प्रेम की कीमत है l”

हम अपने प्रेमियों से अलगाव का दर्द महसूस कर सकते हैं, किन्तु क्रूस पर प्रेम की कीमत चुकाते समय यीशु ने चरम अलगाव महसूस किया l जो मानव और परमेश्वर दोनों ही था, यशायाह द्वारा 700 वर्ष पूर्व दी गई नबूवत को पूरा किया जब “उसने अपना प्राण मृत्यु के लिए उंडेल दिया” (यशायाह 53:12) l इस अध्याय में हम यीशु को दुखी पुरुष दर्शाने वाले सुस्पष्ट संकेतक पाते हैं, जैसे जब वह “हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया” (पद.5), जो क्रूस पर उसके साथ हुआ और जब सिपाहियों ने उसके पंजर में भाला भोंका (यूहन्ना 19:34), और कि “उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो गए” (यशा.53:5) l

प्रेम के कारण, यीशु संसार में आया और बालक के रूप में जन्म लिया l प्रेम के कारण, उसने व्यवस्था के शिक्षक, भीड़, और सिपाहियों का दुर्व्यवहार सहा l प्रेम के कारण उसने दुःख उठाया और सिद्ध बलिदान के रूप में मरकर, पिता के समक्ष हमारे स्थान पर खड़ा हुआ l हम प्रेम के कारण जीते हैं l

क्रूस को याद रखें

मेरे चर्च में, वेदी के सामने एक बड़ा क्रूस है l यह मूल क्रूस का प्रतिक है जहाँ यीशु मरा था-हमारे पाप और उसकी पवित्रता का मिलन स्थान l परमेश्वर ने वहाँ पर हमारे मन, वचन और कर्म द्वारा किये गए प्रत्येक पाप के लिए अपने निर्दोष पुत्र को मृत्यु सहने दिया l क्रूस पर, यीशु ने उस कार्य को पूरा किया जो हमें मृत्यु से, जिसके लायक हम थे, बचा सकता था (रोमि.6:23) l

यीशु ने जो हमारे लिए सहा, क्रूस का दृश्य हमें उस पर विचार करने को विवश करता है l उसे कोड़े मारे गए और उस पर थूका गया l सिपाहियों ने उसके सिर पर मारा और घुटने टेक कर उसकी दिखावटी आराधना की l उससे उसकी मृत्यु के स्थान तक अपना क्रूस उठाने को कहा, किन्तु वह कोड़ों की मार से बहुत दुर्बल था l गुलगुता पर, उन्होंने उसे क्रूस पर लटके रहने के लिए उसके हाथों में कीलें ठोकर क्रूस को खड़ा कर दिया l क्रूस पर उसके घावों ने उसके देह का वजन सहा l छः घंटे बाद, यीशु ने अंतिम सांस ली (मरकुस 15:37) l एक सेनानायक यीशु की मृत्यु देखकर बोल पड़ा, “सचमुच यह मनुष्य, परमेश्वर का पुत्र था!” (पद.39) l 

अगली बार जब आप क्रूस का चिन्ह देखें, विचार करें कि आपके लिए उसका अर्थ क्या है l परमेश्वर पुत्र दुःख उठाकर वहाँ मरा और उसके बाद अनंत जीवन संभव बनाने के लिए पुनरुथित हुआ l

हमारे लिए त्यागा गया

क्या मित्र का निकट होना दर्द को सहनीय बनाता है? वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं ने यह देखने के लिए इस पर दिलचस्प अध्ययन किया कि दर्द की सम्भावना में मस्तिष्क कैसी प्रतिक्रिया करता है, और क्या दर्द के भय का खुद सामना करने पर, एक अपरिचित का हाथ थामने पर, अथवा एक घनिष्ट मित्र का हाथ थामने पर भिन्न क्रिया करता है l

दर्जनों प्रयोग पश्चात शोधकर्त्ताओं को अनुकूल परिणाम मिले l आनेवाले दहशत में अकेला व्यक्ति अथवा किसी अपरिचित का हाथ थामे व्यक्ति में, मस्तिष्क का खतरा भापने वाला भाग सजग हो गया l किन्तु भरोसेमंद व्यक्ति का हाथ थामने पर, मस्तिष्क शांत हो गया l एक मित्र की उपस्थिति का सुख पीड़ा को सहनीय बना दिया l

गतसमनी के बगीचे में प्रार्थना करते समय यीशु को दिलासा चाहिए था l उसे मालुम था वह धोखा, गिरफ़्तारी, और मृत्यु सहनेवाला था l उसने अपने करीबी मित्रों से यह कहकर कि “मेरा जी बहुत उदास है” (मत्ती 26:38) उसके निकट रहकर प्रार्थना करने को कहा l किन्तु पतरस, याकूब, और यूहन्ना सोते रहे l

यीशु ने बगीचे में दिलासा के बगैर अकेले पीड़ा सही l किन्तु उसके पीड़ा सहने से, हम आश्वास्त हैं कि परमेश्वर हमें न छोड़ेगा और न त्यागेगा (इब्रा. 13:5) l हम परमेश्वर के प्रेम से अपने को कभी भी विरक्त नहीं पाएंगे (रोमि.8:39) l उसके सहचारिता से हमारे अन्दर और सहन शक्ति पैदा होती है l